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सोसिअल नेटवोर्किंग और नेता- “करना पड़ता है …..”

भावों को शब्द रूप
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इन दिनों सोसिअल (सामाजिक) नेटवोर्किंग का नशा सभी पर चढा हुआ है |भई हम भी उसी में शामिल हैं |अब बरसात आएगी तो मेढक तो पैदा होंगे ही ,लेकिन हम शुरुवाती दिनों के मेढक है|हाल ही में उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव हुए और निकाय चुनाव होने जा रहे हैं ,शायद ही कोई उम्मीदवार ऐसा हो जिसने फेसबुक पर अपना खाता न खोला हो |ऐसे ही कुछ कथित मान्यवरों से मैंने भी पूछ लिया ,अचानक ये क्यूँ ??क्या आप इसको खुद संचालित करते हैं, लोगो के प्रश्नों का खुद ही जवाब देते हैं ?उनमे से कुछ नेता ,नहीं नहीं राजनीतिज्ञों ने मुखर होके बताया अरे शुक्ला जी “राजनीतिज्ञों का ईमानदार दिखना जरूरी है ,ईमानदार होना नहीं ” उसी तरीके से सोसिअल नेटवोर्किंग पर होना जरूरी है ,उसको संचालित करना आना जरूरी नहीं |
फिर अचानक मुझको याद आया कि एक माननीय के फेसबुक पर उन्ही की पार्टी के नेता जी का कार्टून लगा था |मैंने पूछा क्या ये उन्होंने ही लगाया है तो उन्होंने कहा कि अब आपतो जानते ही हो हम दसवीं भी पास नहीं कर पाए हम क्या चलाएंगे ये कंप्यूटर- सम्पयूटर,एक लड़के से कह दिया था कि कभी कभी देख लिया करना उसने ही लगाई होंगी|हमने भी मौका देख कर एक राय दे डाली क्यूँ ना आप एक लड़के को इसका काम सौप दे और उसको कुछ मेहनताना भी दे दिया करे |मैंने सोचा चलो इसी बहाने राजनीतिज्ञ महोदय किसी का तो भला करेंगे |
कुछ राजनीतिज्ञों को सोसिअल नेटवोर्किंग का फायदा तो पता है लेकिन नुकसान नहीं |सोसिअल नेटवोर्किंग का ही असर है कि राजनीतिज्ञों और सरकार की सारी गलत और सही बातें जंगल की आग की तरह या कह ले की किसी के प्रेम प्रसंग की तरह फैलती हैं |जैसा की अभी कुछ दिन पहले हुआ जब एक महाशय की सी.डी. की खबर समाचारों में तो नहीं आई लेकिन सोसिअल नेटवोर्किंग के माध्यम से पहुच गई लोगो तक और फिर बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के संदेशों का भी प्रसार सोसिअल नेटवोर्किंग की ही देन है |
मेरा तो ये मानना है अगर ये राजनीतिज्ञ खुद ही संचालित करने लगे फेसबुक तो कुछ तो जनमानस का दर्द और समस्यांए इनको पता चलेंगी |
जिस देश में सबसे जादा युवा वोटर हो वहाँ सोसिअल नेटवोर्किंग का प्रयोग” करना पड़ता है” |लेकिन अच्छा ये होता कि सबसे जादा युवा वोटर के साथ साथ सबसे जादा फेसबुक प्रयोग करने की सुविधाओं से युक्त लोग भी भारत में ही होते |

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