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“मतदाता की परिक्षा “

भावों को शब्द रूप
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“तजुर्बा” ( अनुभव ) इंसान को बहुत कुछ सिखाता है और इंसान ही हैं जो राजनीतिक दल चलाते हैं | सबसे पुराना राजनीतिक दल होने के नाते कॉग्रेस (#Congress )के पास तजुर्बा भी बहुत है |इसीलिए उसको भारतीय मतदाता के व्यवहार का भी ज्ञान जादा है शायद यहीं कारण है  की वो जान रही है की महंगे महंगे सोफों पर बंद कमरों में बैठकर सरकार की नाकामी का सही आंकलन करने वाले लोग पूरी तरह से मतदान में हिस्सा नहीं लेंगे और मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुगाड़ने वाले गरीब फिर से दो दिन की रोटी के लिए अपना पांच साल का भविष्य कांग्रेस के हाथ में दे देंगे |चाय की थडी ( कुछ जगहों पर  टपरी  या गुमटी ) पर इकठ्ठा होकर सरकार को कोसने वाले लोग अंतिम समय में सब कुछ भूल के चुनावी वर्ष में की गई घोषणाओं के मुरीद होकर “कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ ” पर विश्वास करेंगे |
आने वाले चुनाओं में सही परिक्षा मतदाता की ही है |परिणाम ये बता देंगे की जनता कितना जागरूक हो चुकी है |यहाँ मैं मतदाता की बुधिमत्ता पर कोई प्रश्न चिन्ह  नहीं लगा रहा किन्तु मैं ये बता रहा हूँ की पिछले चार वर्षों की घटनाओं को जनता कितना याद रखती है या नहीं ये परिणाम से प्रदर्शित होगा |
जाति धर्म की राजनीती करके प्रदेशों में सत्ता प्राप्त करने  के लिए कांग्रेस का विरोध करने वाले पिछले ९ साल से केंद्र सरकार में बैसाखी का काम कर रहे हैं ,मतलब की बराबर के भागीदार बने हुए हैं| क्या मतदाता ये समझ पा रहा है या नहीं इसका भी आंकलन चुनाव के परिणाम में प्रदर्शित होगा |
देश की निगाहें किसी नेता या व्यक्ति विशेष पर नहीं हैं बल्कि मतदाताओं पर हैं ,जो की देश की दशा और दिशा तय करेगा|
तय होगा की जनता देश में हो रहे भ्रष्टाचार से कितना परिचित है ,रुपये के अवमूल्यन के कुप्रभाव से कितना चिंतिंत है और दिनपर दिन बढ़ रही महंगाई से कितना परेशान है |
परीक्षार्थी ( मतदाता ) तैयार हैं किन्तु देखना होगा की परिक्षा का विषय जाति ,धर्म ,क्षेत्रवाद होगा या महंगाई और भ्रष्टाचार |

“तजुर्बा” ( अनुभव ) इंसान को बहुत कुछ सिखाता है और इंसान ही हैं जो राजनीतिक दल चलाते हैं | सबसे पुराना राजनीतिक दल होने के नाते कॉग्रेस (#Congress )के पास तजुर्बा भी बहुत है |इसीलिए उसको भारतीय मतदाता के व्यवहार का भी ज्ञान जादा है शायद यहीं कारण है  की वो जान रही है की महंगे महंगे सोफों पर बंद कमरों में बैठकर सरकार की नाकामी का सही आंकलन करने वाले लोग पूरी तरह से मतदान में हिस्सा नहीं लेंगे और मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुगाड़ने वाले गरीब फिर से दो दिन की रोटी के लिए अपना पांच साल का भविष्य कांग्रेस के हाथ में दे देंगे |चाय की थडी ( कुछ जगहों पर  टपरी  या गुमटी ) पर इकठ्ठा होकर सरकार को कोसने वाले लोग अंतिम समय में सब कुछ भूल के चुनावी वर्ष में की गई घोषणाओं के मुरीद होकर “कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ ” पर विश्वास करेंगे |

आने वाले चुनाओं में सही परिक्षा मतदाता की ही है |परिणाम ये बता देंगे की जनता कितना जागरूक हो चुकी है |यहाँ मैं मतदाता की बुधिमत्ता पर कोई प्रश्न चिन्ह  नहीं लगा रहा किन्तु मैं ये बता रहा हूँ की पिछले चार वर्षों की घटनाओं को जनता कितना याद रखती है या नहीं ये परिणाम से प्रदर्शित होगा |

जाति धर्म की राजनीती करके प्रदेशों में सत्ता प्राप्त करने  के लिए कांग्रेस का विरोध करने वाले पिछले ९ साल से केंद्र सरकार में बैसाखी का काम कर रहे हैं ,मतलब की बराबर के भागीदार बने हुए हैं| क्या मतदाता ये समझ पा रहा है या नहीं इसका भी आंकलन चुनाव के परिणाम में प्रदर्शित होगा |

देश की निगाहें किसी नेता या व्यक्ति विशेष पर नहीं हैं बल्कि मतदाताओं पर हैं ,जो की देश की दशा और दिशा तय करेगा|

तय होगा की जनता देश में हो रहे भ्रष्टाचार से कितना परिचित है ,रुपये के अवमूल्यन के कुप्रभाव से कितना चिंतिंत है और दिनपर दिन बढ़ रही महंगाई से कितना परेशान है |

परीक्षार्थी ( मतदाता ) तैयार हैं किन्तु देखना होगा की परिक्षा का विषय जाति ,धर्म ,क्षेत्रवाद होगा या महंगाई और भ्रष्टाचार |

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