भावों को शब्द रूप
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काट कर दरख्तों ( पेड़ों) को तरक्की पा गए हम
प्रकृति के संतुलन को खुदगर्जी में खा गए हम
सूख गई है ये ज़मी सूखा हुआ है आसमां
नदियों के देश में लगता है रेगिस्तान में आ गये हम
चारों तरफ है भीड़ सी, एक बूँद भी अनमोल है
वक्त है अब भी समझ लो, इसके मूल में कौन
इमारतों के लिए जिसने तालाब को पाटा है वो
या की जिसने लाभ के लिए पेड़ों को काटा है वो
आओ प्रण करें अपनी गलती को सुधारेंगे हम
देकर सुरक्षा जंगलों को फिरसे सवारेंगे हम
जन्म हो बच्चे का या बिटिया को हम बिदा करें
क्यूँ न एक पेड़ लगा के उसकी यादों को हरा करें
आने वाली पीढियां भी देख पानी और पेड़ पाएंगी
पानी ढोने की जगह पढने को फिर वो जाएँगी …..#Latur#Water_crises
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